सारे जग से प्यार हो गया / बालस्वरूप राही
प्यार हुआ क्या तुमसे मेरा, सारे जग से प्यार हो गया।
कुछ रोया रोया सा मन था, कुछ खोया खोया सा जीवन
सांस देह में आती जाती तो थी पर कुछ उन्मन उन्मन
तुमने केवल एक बार ही मेरी ओर निहारा हंस कर
अश्रु नयन श्रृंगार बन गये, विरह मिलन त्यौहार हो गया।
फूल फूल में निरख रहा मैं ममता मय मृदु हास तुम्हारा
बादल बनकर घिरा गगन में पीड़ामय निश्वास तुम्हारा
क्या दुलाराऊं क्या ठुकराऊं किसे निहारूँ किसे बिसारूँ?
एक तुम्हारी छवि का दर्पण यह सारा संसार हो गया।
मैं गाता हूँ गीत वंदना किन्तु तुम्हारी बन जाता है
तुमसे और तुम्हारी सुधि से ही केवल मेरा नाता है
किस करनी पर मैं इतराऊँ किस करनी पर मैं पछताऊँ?
जब कि तुम्हें ही सहज समर्पित मेरा हर व्यापार हो गया
किस्से रूठूँ किसे मनाऊं कौन मीत विपरीत कौन है
एक पीर से जन्मे दोनों कौन रुदन है गीत कौन है
मेरे लोचन परख न पाते कौन सगा है कौन पराया
तुमसे लगन लगी है जब से पतझर मुझे बहार हो गया।
जो न पहुंचती द्वार तुम्हारे कोई ऐसी राह नहीं है
जिसे न सम्बल मिले तुम्हारा कोई ऐसी बांह नहीं है
किससे पूछूँ क्यों पूछूँ मैं, नाम तुम्हारा गाम तुम्हारा
जहां हार कर बैठ गया मैं, वही तुम्हारा द्वार हो गया।
प्रशन नहीं कोई अंतर में, शंका, भ्रम, अवसाद नहीं है
तुम हो कौन और क्या परिचय मेरा है कुछ याद नहीं है
तोड़ दिये पतवार तर्क के, पाल बुद्धि की स्वयं हटा दी
ज्ञान तरी तो डूब गई पर मैं सागर के पार हो गया।
बंटी हुई अनगिन दीपों में, ज्योति एक है, ज्वाल एक है
रंग-बिरंगे फूल गुँथे पर डोर एक है, माल एक है
माया का आवरण हट गया प्रकृति पुरुष का भेद मिट गया
नाम रूप से हीन हुआ तो तुमसे एकाकार हो गया।
प्यार हुआ क्या तुमसे मेरा, सारे जग से प्यार हो गया।