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सारे दिन पढ़ते अख़बार / माहेश्वर तिवारी
Kavita Kosh से
सारे दिन पढ़ते अख़बार;
बीत गया है फिर इतवार ।
गमलों में पड़ा नहीं पानी;
पढ़ी नहीं गई संत-वाणी;
दिन गुज़रा बिलकुल बेकार ।
सारे दिन पढ़ते अख़बार ।
पुँछी नहीं पत्रों की गर्द
खिड़की-दरवाज़े बेपर्द
कोशिश करते कितनी बार ।
सारे दिन पढ़ते अख़बार ।
मुन्ने का तुतलाता गीत-
अनसुना गया बिल्कुल बीत
कई बार करके स्वीकार ।
सारे दिन पढ़ते अख़बार ।
बीत गया है फिर इतवार ।