सार्थकता / शेफालिका वर्मा
तुमसे अलग हो आज यह अनुभूति हुई
साँस लेना ही ज़िन्दगी नहीं
किन्तु
जीवन की सार्थकता बनाना
महती उद्देश्य होना चाहिये
सार्थक?
कैसे बनाऊँ प्रश्न छटपटाता रहा
बेचैन सा
पछवा पुरवा में लहराते पेड़ों की
शाखा से पत्तों की
लयात्मक गति से झर झर गिरने से
बेला गुलाब की सुरभि से
तुम्हारा संदेशा आ रहा था
सार्थकता उद्देश्य नहीं
जीवन की प्रक्रिया है
अपनों का साथ
एक दूसरे के सुख दुख में साँस लेना
एक–दूसरे के आँसू पोंछने में ही जीने की
सार्थकता है
अपने लिए तो सभी जीते हैं
पर तुम जिओ
उस सूरज की तरह
जो कभी अस्त नहीं होता
धरती के इस छोर से उस छोर तक
परिक्रमा करता रहता है
सबों को रोशनी बाँटता है
सबों को चैन देने में
उसका जीवन
सार्थक हो जाता है
बादल लगते हैं
कुहासा उसे ओट कर देता है
किंतु
वह कभी डगमगाता नहीं
अपने कर्तव्य में
अपने को सार्थक करने में
सबों के जीवन को
वह अडिग अटल है
प्रतिपल प्रतिक्षण।