भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सार्थक एक लम्हा / शैलप्रिया
Kavita Kosh से
आज
जीना बहुत कठिन है।
लड़ना भी मुश्किल अपने-आप से ।
इच्छाएँ छलनी हो जाती हैं
और तनाव के ताबूत में बंद ।
वैसे,
इस पसरते शहर में
कैक्टस के ढेर सारे पौधे
उग आए हैं
जंगल-झाड़ की तरह ।
इन वक्रताओं से घिरी मैं
जब देखती हूँ तुम्हें,
उग जाता है
कैक्टस के बीच एक गुलाब
और
ज़िंदगी का वह लम्हा
सार्थक हो जाता है ।