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सार्थक है भटकाव / सुरेश ऋतुपर्ण
Kavita Kosh से
सार्थक है भटकाव
कि दिशा देता है ।
टूटन का इतिहास
बन चंदन महकता है ।
सृजन-ज्वार
कल्पना की नाव को
कहाँ से कहाँ
ले जा पटकता है
घनघोर घुमड़न के बीच
किसी शब्द-ऋषि का मन
डूब, डोलता है ।
आकाशदीप-सी चमकती आँखों में
झिलमिल स्वप्न-शिशु का
गुदगुदा जिस्म ढलता है ।
सीपिया पलकों में पल
रचना का मोती
आँसू बन टपकता है ।
यों बार-बार
कवि का निजत्व
समर्पित होता है ।
टूटन का इतिहास
बन चंदन महकता है ।
सार्थक है भटकाव
कि दिशा देता है ।