भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सार्वजनिक भीड़ में भी / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सार्वजनिक भीड़ में भी

विभाजित हूँ मैं

तुम्हें पाने के लिए,

अविभाजित एकाकीपन में

बह रही धारा को

बांध पाने के लिए ।