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सार्वजनिक भीड़ में भी / केदारनाथ अग्रवाल
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सार्वजनिक भीड़ में भी
विभाजित हूँ मैं
तुम्हें पाने के लिए,
अविभाजित एकाकीपन में
बह रही धारा को
बांध पाने के लिए ।