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सार्वजनिक सज़ा / उमा शंकर सिंह परमार
Kavita Kosh से
युग बीते
हाथ रीते
अब तक जूझे
कभी न जीते
करते रहो करते रहो
आत्महत्या
सब मौंन हैं
सब की रजा है
तुम्हारे चुप रहने की
सार्वजनिक सज़ा है