सार छंद / सुनीता काम्बोज
मेरे मोहन मेरे गिरधर , मेरे कृष्ण मुरारी
गिरवरधारी नटवर नागर ,मुरलीधर बनवारी
जन्म लिया मथुरा में तुमने, ब्रज में रास रचाया
देती है हर और दिखाई, गिरधर तेरी माया
मार पूतना भी दी तुमने ,अका बकासुर मारे
ब्रज के स्वामी तुम हो मोहन , गोवर्धन नख धारे
माखन की चोरी करते हो ,सखियों के घर जाकर
सब की सुध-बुध हर लेते हो ,मुरली मधुर बजाकर
नाग कालिया के फन ऊपर, नाचे नंददुलारे
जो गाता है कृष्णा -कृष्णा ,सबके भाग सँवारे
बने सारथी तुम अर्जुन के ,रण में खेल रचाया
जब अर्जुन ने धीरज खोया ,गीता सार सुनाया
राधा तेरी ही दीवानी ,तुमसे बाँधी डोरी
चोर बड़े मतवाले हो तुम, दिल की करते चोरी
मीरा जोगन हुई सावँरे ,गली-गली गुण गाकर
कुब्जा का कूबड़ छुड़वाया , माथे तिलक लगाकर
दीन सुदामा को कर डाला,तीन लोक का स्वामी
कोई रहस्य छुपा न तुमसे ,तुम हो अंतर्यामी
कभी साँवरे मुझको अपनी, एक झलक दिखला दो
मैं आऊँगी तुमसे मिलने , अपना पता बता दो
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