भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सालीणौ इम्तहान : दो / राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'
Kavita Kosh से
पापड़ी जम्या जोहड़ा
तिणकलां तरसती
टाट अर लरड़ी
डरूं-फरूं ऊभी
गाय-बाछी
सूंसाती
भैंस्यां
जाळ मांय लुक्यौड़ा
मोरिया
नीमड़ै मांय अज्यासा
चीड़ी-कागला
हाडका चूंथता
गंडका
मुरधर मांय अैनांण
सुरजी री फटकार रा
इंदर री रीस रा
सालीणै इम्तहान रा।
सगळी आंख्यां
आभै टिक्यौड़ी
उडीक फगत
अेक बादळी री।