भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सालों से कोई चीज़ जल रही है / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
सालों से
कोई चीज़ जल रही है
जीवन के रसोईघर में
और
अहसास की नाक
अभाव के जुकाम में संज्ञाशून्य है