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साल तो बदला है, आँगन कहाँ बदले / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
साल तो बदला है, आँगन कहाँ बदले।
रात तो बदली है, साजन कहाँ बदले।।
राज भी बदला है, सरकार भी बदली।
ताज तो बदले हैं, आसन कहाँ बदले।।
रस्ल का अखबार कदर है कहाँ करते।
राश भी बदले हैं, राशन कहाँ बदले।।
भेष तो बदले हैं पोशाक भी बदले।
रहनुमा के मुख के भाषण कहाँ बदले।।
लुट गये है सब कुछ पर वे नहीं बदले।
राज नेताओं के सावन कहाँ बदले।।