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साल दर साल / बैर्तोल्त ब्रेष्त / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
आज की रात तुम्हें प्यार कर रहा हूँ मैं
आकाश में चुपचाप सफ़ेद बादल छाने लगे हैं
सूख चुके गड्ढों-गह्वरों में काँप रही है हवा
और नदी-झरनों में पानी उबल रहा है
साल दर साल पानी गिरता रहा
फेन बहता रहा नदी-नालों में
उभरते रहे आकाश में ऊपर
झुण्ड के झुण्ड बादल हमेशा की तरह
एकाकी उन वर्षों के बादलों की सफ़ेदी
झलक रही है अभी तक
अब भी घास में काँपेगी हवा
पत्थरों पर ढुलकेगा झरनों का पानी
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय