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साल नया आता जैसे घूँघट में आती नई बहुरिया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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साल नया आता जैसे घूँघट में आती नई बहुरिया।
साल पुराना जाता जैसे एक दिन घर से जाती बिटिया।
मुनिया ख़ुश है, नए खिलौने पाकर मालिक की बिटिया ने,
दे दी फिर से उसको अपनी एक टूटी-फूटी सी गुड़िया।
साल पुराना दे जाएगा खट्टी मीठी यादें जिनसे,
मन ख़ुश होकर या फिर दुख से भेजेगा आँसू की चिठिया।
ख़ुद जाकर जोतूँ बोऊँगा अबके बरस वचन लेता हूँ,
अपने बूढ़े खेतों को यूँ और न दूँगा अब मैं अधिया।
साल नया कुछ शर्माएगा फिर बन जाएगा आदत ये,
धीरे-धीरे ज्यों कॉफ़ी का स्वाद नया चढ़ जाता जिभिया।