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सावचेत / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
बिन्यां जुड़यां
कोई न कोई गांव स्यूं
कोनी जावै परबारो
कठेई कोई गेलो !
फंट सकै
सांकड़ी गळयां
जकी जावै कोई ढाणी
कोई तलाव’र
कोई खेत
पण रहीजे
नहीं कर दै
गेलाचूक
कोई भटक्योड़ा पगां रा
खोज मंडयोड़ी
रेत !