भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सावण री तीज / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
सावणियै री आई तीज
त्युंहारां नै ल्याई तीज।
पंछीड़ां री डारां आवै
कोयल मीठा गीत सुणावै
बाग बगीचा हरया-भरया है
भांत-भतीला फूल खिल्या है।
हरियाळी री साथण तीज
त्युंहारां नै ल्याई तीज।
बागां में म्हे हींडां मांडां
हींडा ले ले गीत सुणावां
ऊंची ऊबकली मचकांवां
आभै सूं बातां कर आवां।
बादळ बरसै जावां भीज
सावणियै री आई तीज
त्युंहारां नै ल्याई तीज।