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सावन कठवा कटाय दइयो / भोजपुरी

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सावन कठवा कटाय दइयो, भादो ही खाट बिनात।
कुआर ही मासे पिया नहीं सोवे, हँसि-हँसि पूछत बात री।
ननदी के बीरना नादी बहले रस, अरि दैया।।१।।
गोरे तोरे लागिले अगिला हरवहवा, भइया अगिला,
आनन्दी के धान जनि बोवहु।
अपने त सूतेले रंगमहलिया, पियवा के भेजे खलिहान, री ननदी के.।।२।।
अरि दइयो, होइबों में बन के हरिनिय, हरिनिया,
पियवा जे होइहें निसाचारी, केवटा के रूप धरि बन विखी ढूँढ़े,
खोजत फिरत चहुँ ओर, री ननदी के.।।३।।
अरि दइयो, होइबों में जल के मछरिया, मछरिया,
पियवा के होइहें मलाह री।
केवटा के रूप धरी जल बीची ढूँढे़ं, खोजत फिरे चहुँ ओर री ननदी के.।।४।।
अरि दइयो री, रोज छूटल सेज, राव, कजराव,
कावा फेरत टूटे हार री ननदी के.।।५।।
अरि दइयो री, आठ काठ नदबउली,
कौन सखी हाथ-गोर धोये री।
कौन सखी घइला ले ले ठारे, ठुमुकि-ठुमुकि जल भरे, री ननदी के.।।६।।