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सावन की रातें / कमलकांत सक्सेना
Kavita Kosh से
बूंदों की टप-टप धड़कनें बढ़ातीं
सांवली प्रिया की याद ये दिलातीं।
एकाकी कमरा स्वयं से लजाये
ऐसे में कोई गीत गुनगुनाये।
गीतों में विरही वेदना छिपी हो
संभव है स्वप्निल रूप मुस्कराये।
मौसम की लहरें धड़कनें बढ़ातीं।
सांवली प्रिया की याद ये दिलातीं।
बरस रहे रिमझिम बादल जो छाये
बोझिल अधरों पर दर्द उभर आये।
दर्दों की वंशी गाने लगी व्यथा
संभव है कोई मन को दुलराये।
सांसों को देकर प्यार की थपकियाँ
सांवली प्रिया की याद ये दिलातीं।