भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावन केरो मेघ / मुकेश कुमार यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सावन केरो मेघ
बरसै झमा-झम।
बूंद-बूंद गिरै गाछी पर
पानी छमा-छम।
रही-रही चमकै बीजली।
सरंग चमा-चम।
मन उमड़ै-घुमड़ै।
हमरो दना-दन।
पगला बादल।
बरसै खेत-खलिहान।
पानी फुहार।
बौछार सांझ-विहान।
गाछ-वृक्ष हिलै-डोलै।
भयंकर आंधी-तूफान।
चर्-चर् बांस-बबूल बोलै।
बगियाँ घना-घन।
झिंगुर, कीट, पतंगा दल।
शोर करै बच्चा करतल।
टप-टप बूंद झरै झल-मल।
फूल, पराग, डाल, निर्मल।
लागै टना-टन।
नीम, बेल, बबूल हरा।
मोर-पपीहा ख़ुशी से भरा।
झूम-झूम वन-वन फिरा।
पांव बाजे पायल।
झनक झना-झन।
दादुर, मेढ़क विलाप करै।
प्रणय निवेदन मिलाप करै।
जाप करै।
ध्यान धरै।
स्वागत करै किसान।
खेती केरो काम।
करै दना-दन।
वर्षा केरो स्वर सम्मोहन।
वंसीधर कृष्ण-मोहन।
मीरा, राधा, रीता, रोहन।
करै मधुर गीत गायन।
संगीत सना-सन।
रिमझिम-रिमझिम वर्षा बूंद।
गिरै धरती पर आँख मूंद।
बूंद-बूंद भरै तालाब।
नदी करै लवा-लव।
सावन हमरो मन भावन।
भींगलै लकड़ी, गोयठा, जलावन।
इन्द्रधनुष सरंग बिछावन।
सूखै खना-खन।