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सावन के अनुबंध / नमन दत्त

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सावन के अनुबंध...
नयन संग सावन के अनुबंध...
बाहर सावन, भीतर सावन, कैसा अंतर्द्वन्द।।
रिश्तों की ये तपन कर गई, मन मर्यादा भंग,
हल्दी, सेंदुर, माहुर, हम, तुम, कितने प्राकृत रंग,
जीवन के बंधन सारे यूँ आज हुए स्वच्छंद।।
नयन संग सावन के अनुबंध...
तुम और मुझ से-हम तक आते, सदियाँ बीत गईं,
अब कैसा खोना-पाना, जब सांसें रीत गईं,
फूल, सितारे, ख़ुशबू, तुम, हम-जीवन के छलछंद।।
नयन संग सावन के अनुबंध...