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सावन के बरखा लाये हो / शकुंतला तरार
Kavita Kosh से
बरसत सावन भीजे मनभावन
उमड़ घुमड़ घटा छाये हो
सावन के बरखा लाये हो
मन के मछरी उधलना मारे
टेंगना कस टिंग-टिंग कूदे
अबक तबक मन हरेली मा अरझय
कुलक-कुलक मन गाये हो
सावन के बरखा लाये हो
बादर के संग मा मयं उड़ी-उड़ी जाववं
झिमिर झिमिर झरी बरसवं
फुदुक फुदुक मन मोरनी नाचे
जब कारी घटा घिर आये हो
सावन के बरखा लाये हो