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सावन चलै झुमी / मुकेश कुमार यादव

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सावन चलै, झुमी।
गाछ-वृक्ष के चुमी।
धान-पान करै नित स्नान।
मजदूर-किसान राखै ध्यान।
बरसै मेघ नदी, पहाड़ घुमी।
सावन चलै, झुमी।
मांगुर-गच्ची-गरै।
छलमल-छलमल करै।
आरी-आरी धान के क्यारी।
बूंद-बूंद झरै।
हरा-भरा भूमी।
सावन चलै, झुमी।
जीव-जंतु के प्यास।
एक नया उल्लास।
जीवन केरो आस।
मने-मन गुणी।
सावन चलै, झुमी।
एक्के रंग सांझ-बिहान।
घर-ऐंगना कोसी-गांग।
सात दिन, सात रात।
नञ् सुनै केकरो बात।
रमता योगी केरो धुनी।
सावन चलै झुमी।
कोठी तर दीया बारै।
गोयठा चुलो कोय नञ् पारै।
सत्तू फांकै, उपर झांकै।
मेघ हँसै, सुनी।
सावन चलै, झुमी।