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सावन बीते जात हमखो ससुराल मे / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सावन बीते जात हमखों ससुराल में,
भइया भूले भरम जाल में।
जिस दिन कीन्हीं विदा हमारी,
सब घर रुदन कियो तो भारी,
अब क्यों हमरी सूरत बिसारी,
वा दिन रो रये खड़े खड़े द्वार में। भइया...
असड़ा मेरी विदा कर दई ती,
रो-रो व्याकुल मैं हो गई थी।
वा दिन तुमने जा कै दई ती,
हम लुआवे आये दिना चार में। भइया...
संग की सखियां मायके जावें,
हम अपने मन में पछतावें,
भइया आवें तो हम जावें,
बहिन डूब रहीं आंसुओं की धार में। भइया...
पूनो तक लो बाट निहारी,
लुआवे आये न बिरन हजारी
जो कऊं हुइयें याद हमारी,
तो आहें जरूर आज काल में। भइया...