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सावन में झमकी केॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
सावन में झमी केॅ बरसोॅ बदरिया।
सजनीं सें मिलै लेॅ अयतै साँवरिया।
मेहंदी रचैतै जी,
लगै तै महावर।
सोलहो शृंगार करतै,
हँसतै दिलावर।
सजतै लिलारोॅ में हरी-हरी बिंदिया।
सावन में झमी केॅ बरसोॅ बदरिया।
सजनीं सें मिलै लेॅ अयतै साँवरिया।
झूला कदम्बोॅ में
सखी सहेलिया।
साजन झुलैतै जी!
बजतै बसुरिया।
हवा में लहरैतै धानी चुनरिया।
सावन में झमी केॅ बरसोॅ बदरिया।
सजनीं सें मिलै लेॅ अयतै साँवरिया।