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सावन हुआ मदहोश किसका दोष / श्याम निर्मम

जेठ में —
सावन हुआ मदहोश किसका दोष,
सींकचों में क़ैद है निर्दोष !
किसको दोष ?

कौन है —
जो पी गया सारे सुखों का रस,
काटता हमको समय है और हम बेबस
मुट्ठियों में बन्द है विश्वास, मन में रोष !
किसका दोष ?

चाँदनी ही
आग की बन जाय जब पर्याय
चेतना गुमसुम रहे देखे ठगी निरुपाय
बहुओं का बल हुआ कमज़ोर, गरजे जोश !
किसका दोष ?

चादरों से
पाँव लम्बे हो गए जिनके,
पेट में घुटने दिए चुप सो गए कितने
जीतने की चाहना लेकर दौड़ में कछुआ हुआ खरगोश !
किसका दोष ?