भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सावां गीत / 4 / भील
Kavita Kosh से
भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सब याही आया वोते एक याही नी आया!
लाव कटोरी काटो नाक, लाव विचारा नो ढाकूं नाक!
डांडे-डांडे उतरवो बाई छछूंदरी,
काल-गान चोटी कातरवो बाई छछूंदरी!!
-सावां लाने वालों के लिए गीत में कहा गया है कि- सभी समधी भाई हैं, कटोरी
लाओ! इनकी नाक काटूँ और कटी हुई नाक ढाँक दूँ। छछूंदर से कहती है कि-
तू छत की लकड़ियों के सहारे नीेचे उतर। सावां लाने वालों में से किसी की चोटी
कतर डाल।