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साश्वत सत्य / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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मैं व्यथित पथिक तुम शीतल छाया
तुम ‘‘ज्योतिर्मय’’, मैं मृण काया
अर्पण तन मन यह जीवन धन,
शिव रस मुझमें सघन समाया।।

आगमनित स्वर्ग से गंग सम
शीतल, चंचल, मन बज मृदंग
अति व्याकुलता....! इस व्यथित मन
बंध जटापाश, शिव से संगम।।

अवलोकित मन, मानव दर्पण
हुई तृप्त क्षुधा पा आलिंगन।
मुक्ति की अविरल धारा में,
हुए शांत, व्यथित पथिक के मन।।

सत्कर्म से संचित ‘‘लता कुँज’’
कोमल, कोपल सम पुष्प पुँज
सद्गुण सुगंध धन हो उपवन,
साश्वत यात्रा संग राम गुँज।।

कर्मण्य भाव से कर्णधार
सम्पदा स्वजन का प्रेम अपार
पर सत्य परम ये जन्म-मरण
अद्वैत से मिल हुए आत्मोद्धार।।