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सासु जे सुतल कोठा पर, ननद कोठलिया हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रसव-वेदना प्रारम्भ होने पर जच्चा बेचैन है। सास, ननद और पति अलग-अलग सोये हैं। उन लोगों के पास जा-जाकर जगाने की शक्ति उसमें नहीं रह गई है। लाचार होकर वह अपने जेवरों को फेंक-फेंककर उसकी आवाज से उन लोगों को जगाने में समर्थ होती है। भोर होने पर उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है तथा सारा महल आनंदमग्न हो उठता है।

सासु जे सुतल कोठा पर, ननद कोठलिया<ref>कोठरी में</ref> हे।
ललना, देवरे जे सूतल अँगनमा, हमहुँ अटरिया सूतल हे।
ललना, सामीजी सूतल दरबजबा, केहि क<ref>किसको</ref> जगाएब हे॥1॥
एक पहर रात बीतल दोसर पहर, औरा तीसर पहर हे।
ललना डाँड़ा<ref>कमर</ref> से उठल दरद, कि केहि क जगाएब हे॥2॥
बाला<ref>हाथ में पहनने का एक आभूषण</ref> कँगन खोलि मारलें हे।
ललना, सामीजी उठल चेहाए<ref>चौंककर</ref>, कि कहु धनि कूसल हे॥3॥
भोर आएल<ref>सवेरा हुआ</ref> पह फाटल<ref>सवेरा हुआ; पौ फटी</ref>, होरिला जलम लेल हे।
ललना, बाजे लगल आनंद बधावा, कि गावे लागल सोहर हे॥4॥

शब्दार्थ
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