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साहवरेआँ घर जाणा / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
सदा मैं साहवरेआँ घर जाणाँ, नी मिल लओ सहेलड़ीओ।
तुसाँ वी होसी अल्ला भाणा, नी मिल लओ सहेलड़ीओ।
रंग बरंगी सूल उपट्ठे,
चंझड़ जावण मैनूँ।
दुक्ख अगले मैंनाल लै जावाँ,
पिछले सौपाँ किहनूँ।
इक विछोड़ा सइआँ दा,
ज्यों डारों कूंज विछुन्नी।
मापेआँ ने मैनूँ एह कुझ दित्ता,
इक्क चोली इक्क चुन्नी।
दाज एहना दा वेखके हुण मैं,
हन्झू भर भर रून्नी।
सस्स ननाणाँ देवण ताने,
मुश्कल भारी पुन्नी।
बुल्ला सहु सत्तार<ref>लज्जा रखने वाला</ref> सुणीन्दा,
इक वेला टल जावे।
अदल<ref>न्याय</ref> करे ताँ जाह ना काई,
फज़लो<ref>मेहर</ref> बखरा पावे।
सदा मैं साहवरेआँ घर जाणाँ, नी मिल लओ सहेलड़ीओ।
तुसाँ वी होसी अल्ला भाणा, नी मिल लओ सहेलड़ीओ।
शब्दार्थ
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