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साहित्य की किरणों का प्रकाशन / अनिल अग्रवंशी

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गत वर्ष महान कवि महावीर प्रसाद मधुप जी की पुस्तक ‘माटी मेरे देश की’ प्रकाशित हुई। वास्तव में यह एक पुस्तक का प्रकाशन नहीं बल्कि नवनिर्मित ‘भिवानी परिवार मैत्री संघ’ की धरा पर साहित्य की किरणों का प्रकाशन था।

संयोग से एक दिन मुझे मधुप जी की व्यक्तिगत डायरी पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। पढ़कर ज्ञात हुआ की वे ने केवल हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में पारंगत थे, अपितु वे राज़मर्रा के जीवन से संबंधित परिवारिक, सामाजिक व राजनैतिक विषयों पर भ ज्ञानार्जन के परम जिज्ञासु थे।

अपनी सामान्य दिनचर्या में वे स्वास्थ्यवर्धक जीवनशैली के पक्ष में थे। नियम व सिद्धांतो से आत-प्रोत मधुप जी गृहस्थ होते हुए भी संततुल्य थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में सृष्टि के सीभ फूलों का रस आस्वादित कर उसकी सुगंध को अपने साहित्य में समेट लिया था। अब उसके अनुभव की इस सुगंध का लाभ सम्पूर्ण समाज को मिल रहा है।

हर वर्ष उनकी रचनाओं से संकलन के प्रकाशन की प्रतीक्षा मानो संस्था के सभी सदस्यों को रहती है। मैं संस्था की ओर से उनके परिवार का विशेष आभार व्यक्त करता हूं, जो उस महापुरूष के चरणों मे समर्पित रहते है। जिनके सान्निध्य में उन्हें ऐसे संस्कार मिले। मधुप जी का साहित्य संस्था की गरिमा को विकसित कर दिन-प्रतिदिन एक नए आयाम की ओर ले जा रहा है। एक कवि होने के नाते अंतस की गहराइयों से ऐसे महान कवि के चरणों में सादर नमन करता हूं।

भविष्य में भी मधुप जी के साहित्य से संस्था व समाज को सदैव एक नई दिशा मिलती रहेगी - इसी उम्मीद के साथ संस्था का कारवाँ सदैव उन्नति की ओर अग्रसर रहे।

अनिल अग्रवंशी

उपप्रधान (भिवानी परिवार मैत्री संघ)