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साहिबन कौ नहीं, सभा कौ रुख / नवीन सी. चतुर्वेदी
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साहिबन कौ नहीं, सभा कौ रुख।
बात कर - देख कें - हबा कौ रुख॥
बेरुखी में ई बक्त बीत गयौ।
हम न कर पाये इब्तिदा कौ रुख॥
अब तौ घर फूँकबौ ई सेस रह्यौ।
दिलजले कर चुके अना कौ रुख॥
हम ते पूछौ उरूज की उलझन।
हम नें देख्यौ ऐ चन्द्रमा कौ रुख॥
छान मारे जुगन-जुगन के ग्रन्थ।
इक पहेली ए दिलरुबा कौ रुख॥