(यह पुरानी ग़ज़ल साहिल के० दहिया के लिए)
ज़िक्र जब उसका आ गया होगा।
एक सकता सा छा गया होगा।।
आज तू उसका इन्तज़ार न कर
कल वो भूले से आ गया होगा।
रोएँगे हम वो मुस्कुराएँगे
उनकी महफ़िल है और क्या होगा।
मैं न कहता था और ज़ुल्म न कर
हुस्न कुछ और भी सिवा होगा।
ये जो एक बाब है मोहब्बत का
ख़ूने-दिल से लिखा गया होगा।
दर्द करता था मेरी दिलजोई
वो भी थककर चला गया होगा।
सोज़ की बात का भरोसा क्या
कोई क़िस्सा सुना गया होगा।।
31-7-1995