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साहु का छवो घाटी जाना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा

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होरे पेन्ही बरु लेले हो साहू सिर में पगड़ी रे।
होरे ओढ़ी बरु ले-ले हो साहू खोले तो चादर रे॥
होरे पेन्ही बरु लेले हो साहू जरी के जूतबा रे।
होरे लोहा का कलाई साहु पगड़ी बान्धले रे॥
होरे हेगतवारी डाक हैं साथ धरी लेले हे।
होरे चलि बरु भेले रे बनिया छवो घाटी पोखर रे॥
होरे एक कोस गेलै चांदो दोई कोस गेले रे।
होरे तिसरे हो कोस रे चांदो छबो घाटी पोखर रे॥
होरे देखी नहीं घाटै रे बनियाँ बैठी वरु गेल रे।