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साहूकारों से संबोधित / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
जब भी माँगोगे
अपनी साँसें दे दूँगा
चक्रवृद्घि ब्याज के साथ
मेरे साहूकारो !
इन साँसों को सँजोकर रखना
गुप्त तिजोरी में
घुटन बढ़ेगी
तो काम आएँगी
अगर फरेब जानता तो
वह भी सौंप देता
अगर जानता काला जादू
तो वह भी सौंप देता
गणित की किताब में
भावनाओं का मूल्य देखना
और देखना संवेदनाओं का
मूल्य भी
जब भी माँगोगे
अपना हृदय दे दूँगा
सारे जख़्मों के साथ
मेरे साहूकारो !