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सिंधु किनारे / केदारनाथ अग्रवाल
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सूरज गया,
रात ने अपने पंख पसारे,
निकल पड़े भीतर से बाहर
नभ में तारे,
हाहाकार समय करता है
सिंधु किनारे,
शील-भंग होता लहरों का
बिना विचारे ।