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सिंधु के सपूत, सिंधु तनया के बंधु / लाल कवि
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सिंधु के सपूत, सिंधु तनया के बंधु,
अरे बिरही जरे हैं, रे अमंद तेरे ताप तैं
तू तौ दोषी दोष तैं, कालिमा कलंक भयो,
धारे उर छाप, रिषी गौतम के साप तैं।
'लाल' कहै हाल तेरो, जाहिर जहान बीच,
बारुणी को बासी त्रासी राहु के प्रताप तैं।
बाँधो गयो, मथो गयो, पीयो गयो, खारो भयो,
बापुरो समुद्र तो से पूत ही के पास तैं॥