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सिकुड़ती जा रही है आकाश की परिधि / वंदना मिश्रा

डराया जाता है लड़कियों को
सदियों से
कभी सच में सतर्क करने के लिए
और कभी यूँ ही डराने के लिए

जन्म से पहले ही
बड़ी बड़ी मशीन खोज लेती है
उसका लड़की होना

और खींच लाती हैं उसे
सात तहों के भीतर से
जिससे खत्म हो जाये
उसका भय एक ही
बार में

और जो बच जाती हैं
मशीन की पकड़ से
वे जीवन भर डराई जाती हैं

चोर, पुलिस, जज, अपराधी
रिश्ते, नाते प्रेम घृणा
सबसे।

गरज यह कि
डर बनाया जाता है
उनका स्थाई भाव
पर बड़ी जिद्दी होती हैं
लड़कियाँ
छूट ही जाती हैं
मशीन की पकड़ से भी।

तमाम वर्जनाओं को
धता बताते हुए
वे करती जाती हैं प्रेम।

यहाँ तक कि धोखा
देने वाला भी
सिर धुनने लगता है
डरती लड़कियाँ धीरे-धीरे
काबिज हो रही है
अंतरिक्ष पर

और सिकुडती जा रही है
आकाश की परिधि
विस्तार से लड़की के।