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सिक्के के दो पहलू / उमा अर्पिता

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‘तू’ के भीतर
संपूर्ण ‘मैं’ समाया है, और
‘मैं’ के भीतर
संपूर्ण ‘तू’--
फिर कौन कहता है
कि तू ‘तू’ है और मैं ‘मैं’?
हम दोनों तो, दो पहलू हैं
एक ही सिक्के के--!
लोग चाहे कितना ही
उलट-पलटकर
देखते रहें/गढ़ते रहें
परिभाषाएँ
अपने-अपने अनुरूप,
पर
हमें अलग करने का साहस
न किसी में है/न होगा...!