भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिक्के बरसाना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादल भैया ता-ता थैया,
बादल भैया ता-ता थैया।

पानी के संग बरसा देना,
कम से कम दस-पांच रुपैया।

नोट नहीं सिक्के बरसाना,
एक नहीं कई बार गिराना।

तीस रुपए में हो जाएगा,
चॉकलेट का ठौर-ठिकाना।

चॉकलेट की दम पर ही तो,
खेल सकेंगे चोर-सिपहिया।

कान खोलकर बिनती सुन लो,
सिक्कों की बौछारें कर दो।

हम सब बालक शरण तुम्हारी,
आज हमारी झोली भर दो।

उन पैसों से ले आएंगे,
चना-कुरकुरा गुड़ की लैया।

अगर नहीं सिक्के बरसाए,
भागे सिक्के बिना गिराए।

तो चंदा-तारों से कहकर,
तुमको घूंसे सौ लगवाए।

घूंसे खाकर हाल तुम्हारा,
कैसा होगा बादल भैया।