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सिट्टां री कलम / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
कानी
आया
इण साल
गिगनार री
आंख में
प्रीत रा
बादळिया सपनां
उतरगी चेतै स्यूं
थिरकती झमकती
सोनल बीजळी
मे’ल’र भूलग्यो
उतांवळ में कठेई
आप रो सुरंगो
रामधणख
बिन्यां आयां
धणी नै सपनो
कोनी कर सकी
अणभूती
हियै री साच
धण धरती
रैगी बण’र
बापड़ी
अहिल्या
कोनी लिख सकी
सिट्टां री कलम स्यूं
मतीरां रै
छन्दा में
हरियाळी रो
मधरो गीत,
केठा’स कांई गूंथ्यो
इस्यो जाळ
काफरिया काळ’क
पड़ग्यो
धरती’र आभै रै
मनां में
आंतरो !