भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सितत्तर / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
सेटलमेंट करणो जे बंद कर द्यै
आपणै समाज रा लोग
तो संवेदना रो कतल हुवणो बंद हूज्यै
सबद रा कारखाना आबाद हूज्यै
लोगां नैं हूज्यै आपरी पीढियां रो ग्यान
छंद कविता रा साथै याद हूज्यै।