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सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा ऐसे नहीं होता / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा ऐसे नहीं होता
सनम दिखलाएँगे राहे-ख़ुदा ऐसे नहीं होता

गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़तल<ref>हत्यास्थल</ref> में
मेरे क़ातिल हिसाबे-खूँबहा<ref>ख़ून के बदले का हिसाब</ref>ऐसे नहीं होता

जहाने दिल में काम आती हैं तदबीरें न ताज़ीरें<ref>न युक्तियाँ न सज़ाएँ</ref>
यहाँ पैमाने-तस्लीमो-रज़ा<ref>हर बात मानने की प्रतिज्ञा</ref>ऐसे नहीं होता

हर इक शब हर घड़ी गुजरे क़यामत, यूँ तो होता है
मगर हर सुबह हो रोजे़-जज़ा<ref>फ़ल-प्राप्ति का दिन</ref>, ऐसे नहीं होता

रवाँ है नब्ज़े-दौराँ<ref>युग की धड़कन</ref>, गार्दिशों<ref>चक्कर</ref> में आसमाँ सारे
जो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका, ऐसे नहीं होता

शब्दार्थ
<references/>