भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा ऐसे नहीं होता / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा ऐसे नहीं होता
सनम दिखलाएँगे राहे-ख़ुदा ऐसे नहीं होता
गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़तल<ref>हत्यास्थल</ref> में
मेरे क़ातिल हिसाबे-खूँबहा<ref>ख़ून के बदले का हिसाब</ref>ऐसे नहीं होता
जहाने दिल में काम आती हैं तदबीरें न ताज़ीरें<ref>न युक्तियाँ न सज़ाएँ</ref>
यहाँ पैमाने-तस्लीमो-रज़ा<ref>हर बात मानने की प्रतिज्ञा</ref>ऐसे नहीं होता
हर इक शब हर घड़ी गुजरे क़यामत, यूँ तो होता है
मगर हर सुबह हो रोजे़-जज़ा<ref>फ़ल-प्राप्ति का दिन</ref>, ऐसे नहीं होता
रवाँ है नब्ज़े-दौराँ<ref>युग की धड़कन</ref>, गार्दिशों<ref>चक्कर</ref> में आसमाँ सारे
जो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका, ऐसे नहीं होता
शब्दार्थ
<references/>