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सितारे हार चुकी थी सभी जुआरी रात / भवेश दिलशाद
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सितारे हार चुकी थी सभी जुआरी रात
बस एक चाँद बचा था सो वो भी हारी रात
बताओ कैसे कहाँ तुमने कल गुज़ारी रात
उठायी सूद पे या क़र्ज़ पे उतारी रात
नहीं बुलायी नहीं हमने ख़ुद-ब-ख़ुद आयी
यहाँ न आती तो जाती कहाँ बेचारी रात
उतारा टाँग दिया रेनकोट खूँटी पर
फिर उससे रिसती रही बूँद-बूँद सारी रात
यही हिसाब है अपनी भी ज़िंदगी का दोस्त
नक़द में दिन का किया सौदा और उधारी रात
हमें क़फ़न नज़र आने लगी सितारों पर
जो बचपने में सितारों की थी पिटारी रात