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सितारों से आगे बढे जा रहे हैं / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
सितारों से आगे बढे जा रहे हैं
निगाहों पे किसकी जा रहे हैं!
न जिसके शुरू-आख़िरी के हैं पन्ने
किताब एक ऐसी पढ़े जा रहे हैं
जो सर फोड़ना ही रहा पत्थरों से
ये फूलों के दिल क्यों गढे जा रहे हैं!
उधर राह भी देखता होगा कोई
क़दम जिस तरफ़ ये बढे जा रहे हैं
गुलाब आज मिटने का गम है तो इतना
तेरे हाथ से अनगढे जा रहे हैं