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सिद्धार्थ ही होता.. / रश्मि प्रभा

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मेरे महाभिनिष्क्रमण की ताकत
मेरे पिता नहीं थे
उन्होंने तो मेरे उद्विग्न मन को
बाँधने का प्रयास किया
निःसंदेह ..... एक पिता के रूप में
उनके कदम सराहनीय थे
पर यशोधरा के उत्तरदायी बने !


मैं जीवन की गुत्थियों में उलझा था
मैं प्रेम को क्या समझता
मेरी छटपटाहट में तो दो रिश्ते और जुड़ गए ...
यशोधरा मौन मेरी व्याकुलता की सहचरी बनी !
मैं बनना चाहता था प्रत्युत्तर - राहुल की अबोध मुस्कान का
पर दर्द के चक्रव्यूह में
मैं मोह से परे रहा ....


मैं जानता हूँ
यशोधरा , राहुल मेरी ज़िम्मेदारी थे
पर मैं विवश था ....
मेरे इन विवश करवटों को यशोधरा ने जाना
और मेरी खोज की दिशा में
वह उदगम बनी
सारे बन्द रास्ते खोल दिए
...............
मैं तो रोया भी
पर उसकी आँखें दुआएं बन गईं
उस वक़्त
मुझमें और राहुल में
कोई फर्क नहीं रहा .....
वह पत्नी से माँ बन गई
और उसके आँचल की छाँव में मैं
सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध हुआ .....


दुनिया चाहे मुझे जिस उंचाई पर ले जाए
करोड़ों अनुयायी हों
पर मैं बुद्ध
इसे स्वीकार करता हूँ -


निर्वाण यज्ञ में
यशोधरा तू मेरी ताकत रही
दुनिया कुछ भी कहे
सच तो यही है,
यदि यशोधरा न होती
तो मैं सिद्धार्थ ही होता...