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सिद्धि के मंत्र निष्फल गए / विनोद तिवारी
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सिद्धि के मंत्र निष्फल गए
स्वप्न तो स्वप्न थे छल गए
आयु थी चार दिन की मगर
कल्प से मेरे पल-पल गए
ताल सुधियों के सूखे पड़े
दृश्य से दूर शतदल गए
मिट गई उर से संवेदना
सूखते हाय दृग-जल गए
वक़्त की आँच के सामने
वज्र तक मोम-से जल गए
इस तरह जब भी दंगे हुए
बेगुनाहों के घर जल गए
सच यही है सताए हुए
लोग ही प्राय: चम्बल गए