भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिनुरदानक गीत / शशिधर कुमर 'विदेह'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सखी हे ! चलू आजु मिथिलाधाम ।
                           होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।

मड़बा अछि चारू दिशि साजल,
केरा गाछ सञो द्वारि बनाओल ।
भाँति-भाँति केर चित्र लिखल अछि<ref>प्राचीन मैथिली मे “चित्र लिखब” शब्द थिक ”चित्र बनायब” या “चित्र पाड़ब” शब्द आधुनिक मैथिलीक देन अछि ।</ref>,
साजल बहुविधि फूल आ पल्लव ।
गाबय सखि सभ मंगल–गान ।
                           होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।

सकल महीप पराभव जखने,
शिवक महाधनु तोड़ल रघुवर ।
कतेक विघ्न केर बाद आयल अछि,
ई पुणीत शुभदिवस सुअवसरि ।
लागल मिथिला शोभा महान ।
                           होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।

माथ उघाड़ि सिया छथि बैसलि,
दर्शन दिव्य, देवगण उमरल ।
वरण कयल मन, वर सम्मुख छथि,
धनि शिव-गौड़ मनोरथ पूरल ।<ref>पुष्पवाटिका मे देल गेल माए पार्वतीक आशिर्वाद ।</ref>
देथिन्ह सिऊँथेँ सिनूर श्रीराम ।
                           होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।

शब्दार्थ
<references/>