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सिन्दूर की रेखा / मधु गजाधर
Kavita Kosh से
सिन्दूर की
एक रेखा,
पूरे जिस्म में मेरे,
ऊपर से नीचे तक,
फैला देती है
एक अद्भुत
स्पंदन
और
किसी के होने का ख्याल,
रच देता है लाली
मेरे होठों पर,
उस के सपने
भर देते हैं
नारीत्व का काजल
मेरी
इन आँखों में,
तुम क्या जानों
कि करोड़ों लोगों की
इस दुनिया में
किसी एक के
बन जाने का,
या
किसी एक को
अपना बना लेने का
ये एहसास
उफ़! कितना प्यारा है ,
भर देता है प्राण
मुझ पाथर की
मूरत में,
निखार देता है
मेरे चेहरे पर
संतुष्टि के सौन्दर्य को
और डुबो देता है
सुख के अथाह
सागर में .....
मुझे..........
जिस से मैं फिर कभी
निकलना नहीं चाहती,
जन्म जन्मान्तर तक
बस मैं...
डूबी ही रहना चाहती हूँ