मोहनजोदड़ो की
कभी न पढ़ सकने वाली
लिपि होती हैं स्त्रियाँ
जिनके मन की तह को
खोलने के लिए
पाना होता है एक दिव्य दृष्टि—
साधारण चक्षु से
हम देख पाते हैं
बस उपरी आवरण को
जिसे मापा जा सके
गणितीय इकाइयों में—
जैसे सागर के तरंगों की
कोई माप नहीं होती
स्त्रियों को भी
नहीं मापा जा सकता है
उनकी लंबाई चौड़ाई व गोलाई में—
तरल द्रव्य-सी स्त्रियाँ
बहती हैं अपनी ही धारा में
जिसमें कोई भी रंग मिला दो
सहज घुल जाती हैं
उसी रंग में-
स्त्रियाँ समझती हैं
बस प्रेम की भाषा
गर उसे दे सको
थोड़ा-सा भी प्रेम
पढ लोगे फिर
आसानी से उनकी भाषा-
स्त्रियाँ जितनी अबूझ होती हैं
उतनी ही सरल हैं
कच्ची मिट्टी की तरह
जिसे चाक पर घुमा कर
मन चाहा पा सको-
सिन्धु नदी की विरासत हैं स्त्रियाँ
जिसकी जितनी खुदाई करो
उतने ही दुर्लभ
प्रस्तर मूर्तियाँ निकलेंगी
प्राचीन धरोहर की तरह-