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सिपाही का गीत / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
मत विरह का गीत गा प्रिय
अनुगूंज उस की गूंजती
है वादियों में
शिथिल पड़ते गांव मेरे
स्वपन की मुझे छांव टेरे
आज तो तू भैरवी गा
जो नसों में जोश भर दे
खून को उतप्त कर दे
आगे बढ़ उठे पांव मेरे
युद्ध की मुझे छांव टेरे
आंसुओं को भेज
मेरी आँख में स्फुलिंग
बनें वे
बाजुओं में बल भरे वे
चीर दूं काले अंधेरे
मुझकोसीमा आज टेरे
नेह पगे तेरी कामना के
चिन्ह मुझको राह दिखायें
मेरे आगे बढ़ते जायें
वे महावर से रचे
प्रिय पांव तेरे
घिर रहे बादल घनेरे
निश्चय मेरा डगमगा न
कान में कुछ फूंक दे तू
वज्र बनकर मैं जला दूं
आशियाने दुश्मनों के
देख रण का नाद टेरे।