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सिम्फ़नी / विपिन चौधरी

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क्या कहा
इस घोर कोलाहल के बीच स्वर संगति
किस मुँगेरीलाल से यह सपना उधार ले आए हो
अब ज़रा ठहर कर सुनो
तीन ताल में जीने को अभ्यस्त हम
सात सुरों की बात कम ही समझ पाते हैं

भीम पलासी यहाँ काफी ऊपर का मामला है
जो हमारे सिर को बिना छुऐ गुज़र जाता है
जब हम अपने होशोहवास से बाहर होते है
तो कई बेसुरे हमारे संगी-साथी होते हैं
जिनके बीच सुरों का काम घटता जाता है

शोभा गुरट, किशोरी अमोनकर, मधुप मुदगल की
बेमिसाल रचना हमें स्पन्दित न कर दे तो
जीना मरना बेकार है
इस पर विश्वास जताने वालो से हम समय रहते दूरी बना लेते हैं

हवा के ज़रिए जीवन में कँपकँपाहट ने कब प्रवेश किया
जीवन का कौन से भाग ऊपर-नीचें डोला
कौन सा भाग बिलकुल गहरी तली में बैठ गया
यह मालूम कब कर सके हम

आशु-रचना हमनें ही ईज़ाद की
लोकगीतों को पुराणों के चंगुल से हम ही लोगों ने आज़ाद किया
फिर भी संगीत से कोसो दूर ही रहे
किसी प्रस्तावना के लम्बे या छोटे से अन्तराल
के बीच एक भी सुर उतर सका
तुरही, बीन, तम्बूरे, जलतरँग से हमारा रोज़-रोज़
का सरोकारी नाता नहीं रहा था कभी

बस हमारे प्यार के पास सँगीत समझने की कुछ शक्ति थी
वह भी हमसे दूर चली गई
जब
हमनें सँगीत का अर्थ मन से नहीं कानों से लेना शुरू कर लिया और
विज्ञान की दिशा को हमनें एक दिशा में भेज दिया
मन को किसी दूसरी दिशा में
यह जानते हुए कि हर दिशा एक दूसरे से ठीक समान्तर है

ऐसे में स्वर-लहरियों की उठान के बीच
आधे-अधूरेपन से जीने वाले हम,
किसी सिम्फ़नी से संगत नहीं मिला पाते
स्वर की संगती हमसे नहीं बन पाती
हर क़दम पर हम पिछड जाते है
संगीत की मादकता के लिए
एक पुल पर कोमलता से चलना होता है
हम हर पुल की नींव को ढहाते चलने वाले
किसी शाप की शक़्ल में त्रस्त, लोथडे से, अभिशप्त।